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Wednesday, June 8, 2022

टूटे दीये!

 "यहां रास्ते मे बैठ कर क्या कर रही हो चाची? चलो! घर चलो! हम छोड़ देते है तुम्हें।" 


"न रे! तू जा। हम आ जायेंगे।"


गोलू अपनी साइकिल पर बैठा और हवा की तरह उड़ गया।


"अरे! गोलू हमाई अम्मा दिखी थी का तुमको?"


"अब दिखी तो थी धन्नो! मगर आयीं नही साथ। हमतो कहे थे कि चलो छोड़ देते है घर।"


"हम सब समझत हैं!" धन्नो मुँह बना कर अंदर दमकते हुए चली गयी।


"देखा। भोलू! अम्मा न आयी नहीं! 5 बज गये। अब हम कहे थे कि हमको कपरा चाहिए। शाम को हाट चलेंगे। लेकिन न, पैसा कहां जी से छूटत है उनके।"


"हां रे धन्नो..हमनें कितनी मेहनत कराई ती उनकी दीया बनाये में। मगर कहाँ सोचत है हमाई खुशी की।"


भोलू किसी डिब्बे में कंचे रखता हुआ बोला।


तभी विमला अपनी टोकरी सिर से उतारते हुए कच्चे आँगन के दरवाजे से झुक कर निकली और टोकरी खाट पर रख दी।


"पूजा के लिए मीठा-बिठा लाई हो कि ऊ भी नहीं।" धन्नो माँ (विमला) से झल्लाते हुए बोली।


"दीपावली है आज, दीपावली..सब के घर मे रंगबिरंगे बलब लगे हैं, रंगोली बनी है और हम हैं कि इन्ही 2 बरस पुराने कपरो में घूम फिर रहे हैं।" धन्नो फिर विमला को पानी का गिलास देते हुए बड़बड़ाई।


"टोकरी से जा कर मीठा और केले निकलकाल ला! जा! थाली सजा कर रख दे पूजा की और हाँ उ जो हमने घर के लिए दीये बचा कर रखे थे वह भी लिआओ, जा के।" धन्नो चूल्हे पर दूध का बर्तन रखते हुए भोलू से बोली।


भोलू ने जाकर टोकरी से कपड़ा हटाया कि वह हतप्रभ रह गया।

"ई का है अम्मा.." भोलू बोला।


"इक मोटरसाइकिल वाला, धक्का मारत निकल गया। का बेचते? का कपरा दिलाते। तोको और धन्नो को।"


तभी धन्नो मां की बात सुनकर वहां दौड़कर आई और टोकरी में एकटक देखने लगी।

टूटे हुए दीये धन्नो की आँखों के सामने टूटे हुए सपनो से पड़े थे।

धन्नो ने फिर टोकरी को उसी कपड़े से ढक दिया जिससे वे पहले ढके हुए थे और विमला की चोट पर दवा लगा कर, इक दीया मंदिर में जलाकर रख दिया।


लेखिका - सुरभि गोली (मौलिक रचना)


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