तीसरा प्यार
चलिये मिलाती हूँ मैं अपने एक ऐसे किरदार से, जो मेरे और आपकी ही तरह है।
और वो है रागनी! एक मिडिल क्लास फेमिली में पली बढ़ी गुस्से वाली, नखरे वाली, प्यारी भी और कहीं - कहीं गम्भीर सी लड़की।
रागनी का बचपन भी हमारी और आपकी तरह ही बीता, कभी बड़ो का प्यार पा कर तो कभी डांट, कभी भाई बहनों से लड़ते हुए तो कभी उनके साथ हजारों खुशियां लूटते व खेलते खाते हुए!
लेकिन अब रागनी एक कॉलेज स्टूडेंट थी, और भले ही आप लोग बहुत ही इंटेलिजेंट रहे हों, पर रागनी एक औसत छात्रा थी। न ही ज्यादा होशियार थी वो पढ़ाई में और न ही बिल्कुल ढप्प!
आज रागनी का लास्ट पेपर था, जिसे वो बहुत जल्दी निपटा कर आ गयी थी, और अब वो उस जगह पर बैठी थी जहां उसके दोस्त मिलते थे, लेकिन...
"पता नहीं! ये उल्लू के पट्ठे ऐसा क्या लिखते हैं पेपर में? टाइम खत्म होने से पहले आते ही नहीं!" रागिनी उस जगह पर अपने किसी दोस्त को न पा कर बड़बड़ाई, पर तभी उसके सिर पर किसी ने कुछ मारा..
"अउच.."
"अउच! क्या बोल रही थी तूँ?? उल्लू के पट्ठे हां??" ये और कोई नहीं रागिनी की बेस्ट फ्रेंड रानो थी, जो थोड़ी सी ज्यादा हेल्थी थी मगर किसी डॉल से कम नहीं दिखती थी।
"तूने मुझे मारा कैसे??" रागिनी रानो की ओर मुड़ कर बोली और उसके हाथ से रोल किया हुआ एक्जाम पेपर छीनने झपटने लगी।
पर तभी वहां किसी ऐसे ने दस्तख दी, जिसे देखने से रागिनी के मुँह पर ताला पड़ जाता था और हाथ पैरों में ठंड लग जाती थी।
"रानो! तुम यही सब करने आती हो यहां? मैं कब से तुम्हारा वैट कर रहा हूँ बाहर!" ये रानो के पापा श्री महेश कुमार जी थे, जिन्हें रागिनी फूटी आंख नहीं भाती थी। वे अपनी बेटी रानो को कई बार मना कर चुके थे कि वो रागिनी के साथ न रहा करे!
मगर दो बेस्ट फ्रेंड्स, दो प्रेमियों से कम नहीं होती बल्कि उनका लगाव किसी प्रेमी जोड़े से भी ज्यादा गहरा होता है, इसलिए जाहिर था कि रानो पर उसके पिता की ये बात कोई असर नहीं कर पाती थी।
"लेकिन अभी तो पूरा टाइम भी नहीं हुआ है पापा! आप इतने जल्दी क्यों आये मुझे लेने??" रानो ने गम्भीरता से अपनी वॉच पर नजर डालते हुए कहा।
रानो का सवाल सुनते ही मिस्टर महेश कुमार ने एक बार रागिनी को कुंठित नजरो से निहारा और फिर बोले -
"तुम्हारे भाई की शादी पक्की कर के लौंट रहा था तो सोचा तुम्हे भी साथ ले लूँ, और फिर तुम्हारे ही पसंद की मिठाईयां ले कर घर पहुँचूँ!
वैसे भी, पंद्रह मिनिट ही तो बचे थे एग्जाम का टाइम खत्म होने में!" महेश कुमार जी की बातें सुन कर रानो और रागिनी के चेहरे देखने लायक थे।
ऐसा लग रहा था जैसे रानो के पिता ने अपनी बेटी और रागिनी को कोई बिजली का झटका दे दिया हो।
"लेकिन पापा...." रोना बौराई हुई सी बोली।
"मुझे तुम्हारी कोई बकवास नहीं सुन्नी है, चुपचाप मेरे साथ चलो!" रानो अपनी बात पूरी कर पाती उस के पहले ही मुकेश कुमार जी ने रानो को उंगली दिखा कर डांटते हुए चुप करा दिया।
रागिनी जो अब तक महेश को ही देख रही थी, उसने अपनी आंखें नीची कर ली!
उसकी आंखें भर आयी थी, वो इतनी परेशान नजर आ रही थी कि रानो उस को इस हालत में छोड़ कर जाने की सोच भी नहीं पा रही थी।
"रागिनी!" रानो ने उदास आवाज में कहा।
"तुम्हे सुनाई नहीं देता रानो?? या फिर अब तुम्हे अपने बाप से बढ़ कर ये लड़की है??" महेश कुमार ने कहा।
"पर पापा मुझे उससे थोड़ी तो बात करने दीजिए..." रानो ने रिक्वेस्ट के साथ कहा।
"मैंने कहा न! चुपचाप चलो घर..." अपने पिता को अब रानो और नहीं टाल सकती थी, उसने रागिनी की तरफ एक बार देखा और नीची नजरें कर के चली गई।
रागिनी भागती हुई एक क्लास रूम में पहुँची!
(आगे पढ़िए अगले भाग में...)
लेखिका - सुरभि गोली (मौलिक रचना)
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