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Thursday, June 9, 2022

कालू और मुन्नी की खुशी

 मन किया कि आज तुमसे बात कर ली जाए। सो चले आये है। हाँ! नया साल आ चुका है। जिसका स्वागत बड़े हर्ष से किया हम सब ने। सबको शुभकामनाएं दी। बधाई दी।

मगर इक तुम ही रह गईं थीं। जिसे मुबारकबाद नही दे पाए थे। चलो अब बुरा न मानो। और ले लो हमसे शुभकामनाएं इक्कीस की। प्यारी डायरी! मैं जानती हूँ तुम्हे। तुम मुझे बखूबी समझती हो। इसलिए कभी किसी बात की नाराजगी नही होती तुम्हे मुझसे। तभी तो हर सुख-दुख में तुम्हारे पास दौड़ आती हूँ। और तुम बिना किसी शिकायत के मेरा स्वागत करती हो।

आज बताऊँ क्या कहना है तुमसे मुझे??
मुझे कहना है। इस धूप के बारे में। जो आज अचानक से सर पर आकर बैठ गई है। अब तुम सोचती होगी। कि ये लड़की हमेशा ऐसी अजीब बाते लेकर ही क्यों मेरे पास आती है। कभी धूप, कभी रात, कभी शाम, कभी सुबह..
अब तुम जो सोचो मुझे तो बस आज इस खूबसूरत धूप की ही बाते करनी है और मैं करुंगी।

तुम तो जानती ही हो जनवरी का महीना है, ठंडक का मौसम है। ठिठुरा देने वाली हवाओ का राज होता है इन दिनों तो। बीते कुछ दिनों से इन हवाओं ने ऐसा कहर ढाया है कि सर्दी से नाक लाल हो गई, सच्ची।
मगर यह धूप..क्या कहूँ इसके लिए तो मैं? बहुत प्यार आ रहा है इसपर। इसके आने से केवल मैं ही खुश नही हूँ। इसके आने से सभी बहुत खुश है..चिड़िया, तितली, फूल-पत्ते, मेरा भाई, मेरी बहने..सब। आज कोई शॉल में नही छुपा सब खुल कर अपने कामो में जुटे हुए है।
अरे! सुनो! तुम्हे पता है सबसे सबसे ज्यादा खुश कौन है?
मैं ही बताती हूँ तुम्हे क्या पता। तुम तो दिन भर मेरे कॉलेज बैग में पड़ी रहती हो। कहाँ क्या हो रहा है तुम्हे कुछ अता-पता नही है।

हाँ! तो सबसे ज्यादा खुश है 'कालू' और 'मुन्नी'। लो अब इन डायरी मैडम जी को तो यह भी पता नही होगा कि यह दोनों है कौन?
कालू हमारे मुहल्ले का सबसे समझदार, नेकदिल, और वफादार कहने की तो जरूरत ही नही। क्योकि यह तो उसकी सबसे बड़ी खूबी है। लोग उसकी इसी खूबी से तो जानते है उसे, उसे क्या? उसके पूर्वजों तक को।
समझी की नही की बिल्कुल मुँह फाड़ कर कहना पड़ेगा कि कालू इक कुत्ता है। लो अब क्या? कह ही दिया। लेकिन इसमें परेशानी क्या है। कुत्ता है। तो है। कुत्ते वैसे भी बहुत पसन्द है, उस लड़की को जो मेरी सबसे करीबी दोस्त है। हां! मुझे भी अच्छे लगते है।
अब जान गई न! कालू कौन है? तो बस अब मुन्नी के बारे में जानो। मुन्नी है मोहन मामा की गाय, मोहन मामा को जगत मामा भी कह सकते है। क्यों की उनसे जो भी मिलता है वही मामा बना लेता है अपना उन्हें। अब बताओ? उनकी ऐसी कौनसी विशेषता है कि अनजान तक मामा कहता है? मुझे तो भाई आज तक यह बात समझ न आयी। खैर मुन्नी के बारे में भी जान गई अब तुम। तो अब यह भी जान लो कि मुन्नी और कालू, सबसे ज्यादा खुश क्यों है। वो इसलिए है..क्योकि...।
क्योकि कालू रात दिन ठंडी से कांपता रहता है। यहां वहां अपने दोस्तों के साथ लुका-छुपा घूमता रहता है। और भूख की तो कहो ही मत। इतना दुबला है कि लगता है, महीनों से न खाया बेचारे ने कुछ। उसके दोस्त भी उसके साथ रहते है। लेकिन उनसे भी झगड़ा-झगड़ी होती रहती है उसकी। कभी खाने को लेकर कभी कुछ को लेकर। बेचारा बहुत उदास सा फिरता है। सबसे ज्यादा बदसूरत कालू ही है उसकी मित्रमंडली में। और तो सब ठीक ठाक ही दिखते है। अब तुम सोच रहीं होगीं। की इतना ही दुबला है, और इतना अच्छा लगता है मुझे वो तो उसकी केअर क्यों नही करती। अब वही तो बात है। वो तो मुझसे डरता है भाई! आता ही नही पास और मैं अपने घर से ज्यादा दूर तक जा नही सकती। कुछ खाने को दो तो पहले ही कोई न कोई झपट ले जाता है। और वो बेचारा सबसे डरता है, क्योकि वो बेचारा मरियल सा। और उसके दोस्त बाहुवली टाइप तो नही कह सकते लेकिन उससे तो अच्छे ही है। तो वह अपने दोस्तो से भी डरता है क्योकि उसके दोस्तों का इक नियम है.."भाई, दोस्ती अपनी जगह। और पेटपूजा अपनी जगह।" तो मैं उसकी केयर नही कर पाती इतनी। लेकिन जब कभी अकेला दिखता है। तो कायदे से कुछ डाल देती हूं खाने। वो चुपचाप से आता है और खा कर गुल हो जाता है।
हाँ! तो बता रही हूँ न! वो खुश है क्योंकि आज धूप निकली है धूप निकली है तो उसे कम से कम ठंड का कहर तो नही झेलना पड़ रहा है। भूखा है तो है।
तुम्हे पता है मुझे कैसे पता चला कि वो खुश है। मुझे ऐसे पता चला कि 'टीना मौसी' ने कुछ रोटियां डाली तो कालू के दोस्त दौड़ कर खाने पहुच गये। शायद कालू को पता था उसे कुछ नही मिलने वाला तो वह चुपचाप धूप में बैठा रहा। उसने देखा कि सब चले गए खाने और उसने अपनी पलको को आंखों पर इतनी नर्मी से रखा जैसे उसे भूख प्यार कि कोई परवाह ही नही थी। उसे बस उस धूप का सुख भोगना था।
अब तुम सोच रही होगी कि ये क्या बात हुई। वो पहले से कुछ खा चुका होगा। शायद इसलिए नही गया खाने कुछ। ऐसा भी हो सकता है।

हां ऐसा भी हो सकता है, लेकिन मुझे नही लगता कि ऐसा हुआ होगा। वह बहुत भूखा घूमता है और उसकी कोशिशों के बाद भी कुछ नही मिलता। मैंने बहुत बार उसकी नाकामी देखी है। और उस नाकामी के बाद उसकी उदासी भी। लेकिन आज उसने उदासी की जगह खुशी से आँखे मूंदि। क्योकि वह जानता था, धूप सबकी है, सभी जगह फैली है। जितना उसको दिख रहा था उतनी जगह तो थी ही धूप से भरी। इसलिए वह खुश था कि उससे यह धूप का सुख कोई नही छीन सकता। और शायद वो सबसे ज्यादा खुश था।

अब मुन्नी की बात बताती हूँ, मुन्नी की बात ऐसी है कि मुन्नी की सुबह शाम भी कुछ कालू की तरह ही थी। मुन्नी को मोहन मामा सुबह 6 बजे छोड़ देते थे चरने के लिए। और दिन भर ठंड में ठिठुरती हुई मुन्नी शाम को अपने घर पहुँचती थी और वहां भी कांपती रहती थी। बहुत दिनों से मैं उसे भी देख रही थी। वह आसमान को नही देखती थी। मगर उसे भी किसी चीज की कमी खलती रहती थी। उसकी आँखों मे भी किसी का इंतजार नजर आता था। मैं सोचती रहती थी। कहीं इसका कोई प्रेमी तो नही बुछुड़ गया।
अब तुम हँसो मत ठीक!
हां! लेकिन मुझे आज पता चल गया कि किसका इंतजार मुन्नी की आंखों में झलकता था।
आज जब देखा मुन्नी कालू के बगल में बैठी है और कोई कपकपाहट उसके बदन में नही। उसकी आँखों मे आज अलग ही रंग था। जैसे उसका इंतजार पूरा हो गया हो। वह आ गया हो जिसका इतंजार वह क़ई दिनों से कर रही थी।
और शायद वह इसी धूप का इंतजार कर रही थी। क्योकि आज वह उदास नही थी।

देखो न डायरी रानी। हम लोग कितने खुशनसीब है कि हर मौसम से हर आपत्ति से बचने के लिए हमारे पास साधन है। फिर भी हम रोते गाते फिरते है। और ये ये बेचारे बस इंजतार ही कर सकते है। ठंडी में धूप का और गर्मी में बरसात का, और बरसात में गर्मी का।

अब जितना मैं तुमसे बतिया सकी सो बतिया लिया। अब बाद में बात करूंगी। बहुत काम हैं। तुम्हे क्या है बस इक तरफ बैठना ही है न!

चलो! अब नाराज न हो। तुम मेरे लिए सबसे प्यारी हो। bye..बेबी।

तुम्हारी सुरभि...✍🏻

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