मोहिनी की जिंदगी इतनी रंगीन थी कि वो उन रंगीनियों से तंगा गई थी, और अब वो एक ठहराव चाहती थी; पर शायद मोहिनी इस बात से अनजान न हो कर भी अनजान थी कि, वो जिस हकीकत से निकलने का ख्वाब पाल पर बैठी हुई है, वो मुमकिन हो कर भी नामुमकिन है।
उस के जाते ही मोहिनी का बदन टूटने सा लगा था, जब उस ने अंगड़ाई ली तो नाजुक गुलाब भी शर्मा गये।
खूबसूरत से थोड़ी सी ज्यादा खूबसूरत मोहिनी ने आज गहरे लाल रंग के लहंगे चोली को अपने गोरे बदल का आवरण बनाया था, उसका गला किसी गहने के अभाव में भी गहने की उपस्थिति जितना खूबसूरत ही लग रहा था, कानों में लंबे लंबे झुमके डाले हुए थे, धुँधराले और हल्के भूरे बाल मोहिनी की कमर को चूम रहे थे,
उसने अपने गालों पर गलतीं से सरक कर आई बिंदी को आईने में देखते ही, माथे पर न सजा कर आईने पर ही लगा दी।
और मतबाले कदमों से खिड़की की ओर चली, खिड़की से बाहर देखने से ऐसा लग रहा था मानों, मोहिनी की आज बारात आने वाली हो,
मगर मोहिनी की किस्मत में तो दूल्हे वाली कोई लकीर की न थी, बारात की बात करना यहां घाव पर नमक लगाना होगा।
दूल्हा न सही पर, कोई था जिसका इन्जार मोहिनी की आंखों में सदा रहता था। पर जिसका इंतजार मोहिनी करती थी, उसे तो फुर्सत ही नहीं मिलती थी, कि आ कर मोहिनी का ये इंतजार मुकम्मल कर दे।
उदास सी हो कर मोहिनी सजे हुए बिस्तर की तरफ बड़ी और चादर की सिलवटों को ठीक करते हुए शिकायत के अंदाज में बोली - "लगता है तुम आज भी नहीं आओगे! मैं ही बाबरी हूँ जो हर रात तुम्हारे इंतजार को आंखों से बसाए बैठी रहती हूं..."
तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तख दी, शिकायत करने वाली मोहिनी का दिल जोरो से धड़कने लगा, चेहरे पर लाली उभरने लगी, लव अनचाहे ही खिलने लगे।
लग रहा था जैसे मोहिनी का इंतजार आज खत्म होने वाला है या हो ही गया है।
जब मोहिनी ने दरवाजे न खोले तो दस्खत दोबारा हुई,
मोहिनी ने हाथ जोड़े और बोली - "भगवान! आज तो सुन लेना..." कह कर मोहिनी दरवाजे की ओर लपकी और झट से दरवाजा खोल दिया,
मोहिनी की नजरें उठी कि उठी रह गई,
एक नोजवान जिसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट है और कंधे पर अध लटका हुआ बैग!
कुछ देर तक मोहिनी और उस लड़के की नजरें मिलती रहीं, अचानक ही दो सजी धजी लड़कियां आपस में झगड़ती हुई वहां से गुजरी तो, मोहिनी और लव, दोनों ही के होश जाग उठे।
मोहिनी ने लव का हाथ खींच कर अंदर किया और दरवाजे बंद कर दिए,
लव जा कर सीधा बेड पर बैठ गया,
मोहिनी की आंखें न जाने क्या सोच कर पसीज गयी, खिला हुआ चेहरा मुरझा गया, मोहिनी की ये उदासी लब के दिल को चुभी और वो बोल उठा -
"मोहिनी! तुम अचानक उदास क्यों दिखने लगीं??"
मोहिनी तुरंत न बोल कर, आहिस्ता कदम बढ़ाते हुए झुकी नजरों के साथ लब की ओर बढ़ने लगी, लब के नजदीक पहुचते ही वो उसके पैरों के पास नाचे जमीन पर बैठ गयी, ये मोहिनी की अजीब सी आदत थी, वो हमेशा लब के पैरों के पास ही बैठती थी, शायद उसे उसकी गोद में सिर रख कर उससे बात करना पसंद था,
जैसा कि उसने अभी किया,
"लब! तुम्हे इस मोहिनी की याद नहीं आती??" कहते हुए मोहिनी की आंखों से एक आंसू की बूंद लुढ़क पड़ी।
लब ने भी हमेशा की तरह अपनी गोद में रखे मोहिनी के सिर को सहलाते हुए कहा - "याद न आती तो क्या मैं आता??"
"याद आती तो रोज आया करते! कभी - कभी तो मेहमान आते हैं, अपने तो हमेशा पास रहते हैं।" मोहिनी के स्वर में हल्की शिकायत झलकी।
"मोहिनी! क्या तुम से कुछ छुपा है?? सब जानती हो न! मैं रोज तुम से मिलने नहीं आ सकता यहां पर! फिर हर बार एक ही शिकायत क्यों??" लब ने कहा।
"क्योकि तुम्हे मुझ पर तरस नहीं आता, तुम नहीं जानते कि मैं कितनी तखलीफ़ में हूँ, तुम जानते हुए भी अपना वादा नहीं निभाते! पिछले तीन साल पुराना वायदा है तुम्हारा, तुम्हे उसे पूरा करने का ख्याल नहीं आता! तुम ने कहीं मुझ से दिल्लगी तो नहीं की थी न! लब!" मोहिनी ने सिर को उठाते ही लब की ओर नजरे फेरीं।
लब के होठ जैसे सी गये, आंखें शर्म से झुक गई!
मोहिनी के लिए ये कोई छोटी बात नहीं थी, अंदर से मोहिनी कांप सी उठी!
क़ई सवाल इकट्ठे ही जहन में उठ पड़े, पर मोहिनी के होठ जैसे उलझ गए, क्या पूछे?? क्या कहे??
कुछ पल तक मोमबत्ती के उजालों से जगमगा रहा, गुलाबो से महक रहा कमरा, खामोशी के बीच घिरा रहा।
"लब! तुम मुझ से दिल्लगी नहीं कर सकते न! तुम तो मुझ से प्यार करते हो न! तुम ले जाओगे न मुझे इस नरक से निकाल कर तुम्हारी दुनिया में..??" मोहिनी के चेहरे को देख कर एकबारगी आप और हम भी उलझ जाते, वो डरी हुई है? घबराई हुई है? या उम्मीद से भरी हुई है?? नहीं समझ सकते थे।
"मोहिनी! आज तुम्हारा जन्मदिन है न! चलो, हम सेलिब्रेट करें.., देखो! मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आया हूँ.." लब ने बात को इधर उधर करते हुए कहा और अफ़रदफ़्री के साथ अपने बैग से खूब सारी चोटलेट्स निकालने लगा, एक केक भी था!
मोहिनी, लापरवाही से लब को ही निहारती रही, जहां वो जाता, वही उसकी निगाह चल पड़ती, जहां वो रुकता वहिं रुक जाती, होंठ हल्के खुले हुए थे, मानों..बंद करने की उसे सुध भी नहीं थी।
लब ने पास से एक स्टूल सरकाया, बिस्तर पर बिखरे खुशबूदार गुलाबो को उस पर बिछाया और केक को उस पर रख दिया, दो - दो नम्बर वाली दो कैंडल्स निकाल कर लब ने केक के बीचों बीच जमाया और कमरे को रोशन करने वालो मोमबत्तियों में से एक को उठा कर उससे केक पर जमाई हुई कैंडल्स जला दी।
उसने मोहिनी के माथे को चूमा और हाथ में प्लास्टिक का चाकू पकड़ा कर बोला, "मोहिनी! इस केक को काटते हुए ये सोचना कि ये मेरा गला है!" कहते हुए लब का गला भारी हो गया और चेहरा शक्त दिखाई देने लगा।
सुनते ही मोहिनी की नजरें हैरानी से लब के चेहरे की ओर दौड़ी!
"मोहिनी! सच कहूं तो मैं यहां आना ही नहीं चाहता था आज!" लब ने कहा।
मोहिनी अनायास ही मुस्कुरा उठी, उसकी आँखों में आंसू तैर गये - "फिर क्यों आ गए??"
"सोचा! तुम त्यौहार सिर्फ अपने इस दिन को जन्मदिन को मानती हो, और इसे ही दिल से मनाती हो, इसलिए..इसलिए मैं नहीं चाहता था कि मेरे न आने से तुम इसे भी यूंही गुजार दो!" लब ने कहा।
"न आते तो शायद गुजर भी जाता! अब तो गुजारना भी मुश्किल होगा।" मोहिना ने नजरें मोड़ कर जमीन पर ठिकाई।
"मैं जानता हूँ तुम बहुत उदास हो..." आगे लब कुछ कहता उसके पहले ही मोहिनी बोली -
"उदासी? ये तो बहुत छोटा शब्द है! और लगता है जो मेरे दिल में ठहर गया है उसके लिए अब तक तो कोई शब्द भी नहीं ईजाद हो पाया!" दिल पर चोट सी खाई हुई मोहिनी ने मुस्कुरा कर कहा।
"देखो मोहिनी! मैं अपनी मां का दिल नहीं तोड़ सकता..." लब ने कहा।
"पर मेरा तोड़ सकते हो! हां, ये लाजमी भी है...एक वेश्या को मां की जूती की भी तुलना नहीं कर सकती!" मोहिनी की आंखें बरस पड़ी।
"मोहिनी..., कितनी बार कहा है तुमसे अपने लिए ये शब्द इस्तेमाल मत किया करो! मैंने तुम्हे कभी इस नजर से नहीं देखा..." लब की आवाज में एक दर्द से फुट पड़ा।
"कहने न कहने से सच तो नहीं बदलेगा! खैर...इस केक को अब मैं नहीं काट सकती! तुम इसे ले जाओ!" मोहिनी उठ खड़ी हुई।
"लेकिन मेरा मन हमेशा दुखेगा ये सोच कर की मेरी वजह से तुमने अपना त्योहार नहीं मनाया!" लब ने मोहिनी के पास आ कर कहा।
"ये तो ये बोलते वक़्त सोचना चाहिए था कि इसे मेरा गला समझ कर काटो! मैं...मैं तुमसे मोहोब्बत करती हूं, और मोहोब्बत में जान दी जाती है ली नहीं जाती।
तुम अब यहां से चले जाओ लब! मैं और खुद को बेवश नहीं देख सकती.., चले जाओ वरना मैं मैं खुद को रोक नहीं पाऊंगी!" मुट्ठियाँ कसते हुए मोहिना लब से बोली।
"जो भी दिल में हो कैछ डालो मोहिनी! मैं तुम्हे इतनी बड़ी तखलीफ़ दे सकता हूँ और तुम मुझे दो गालियां भी नहीं देना चाहती???" लब जो मोहिनी के बिल्कुल पीछे खड़ा था, तड़फ कर बोला।
मोहिनी खुद को और रोक न पायी और लब के सीने से लग कर फुट फुट कर रोने लगी।
लब की आंखे भी आंसुओ को संभाल न सकी, लब ने मोहिनी को बाहों में बेतहाशा भर लिया।
दीवारें ये उदास मंजर देख कर सहर उठी, ख़ामोशी चारों ओर फैली रही।
बस आहे! और सिसकियां हक जमाये हुई थी।
"क्यों किया मेरे साथ तुमने ऐसा लब! क्या मैं इंसान नहीं हूं?? क्यों मुझे विश्वास में रख कर अकेला कर दिया?? तुम्हारे वादे के सहारे ये तीन साल गुजारे हैं मैंने इस जहन्नुम में.., अब आगे किस उम्मीद के साथ सांसे लूँगी???" बिलखती हुई मोहिनी बोली।
लब निढाल सा मोहिनी के पैरों में गिर गया, और किसी बच्चे की तरह रो पड़ा।
पता नहीं मोहिनी लब को कभी माफ कर पाई या नहीं! लब मोहिनी का दिल तोड़ने का अपराध भुला पाया या नहीं, मगर लब की मां, अपनी बहू और लब की बीबी अनुप्रिया के आने से बहुत खुश है।
समाप्त!
लेखिका - सुरभि गोली (मौलिक रचना)
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